सविनय अवज्ञा आंदोलन पर निबंध | Essay on Civil Disobedience Movement | Savinay Avagya Aandolan in hindi

सविनय अवज्ञा आंदोलन पर निबंध | Civil Disobedience Movement | Savinay Avagya Aandolan essay in hindi महात्मा गांधी ने नेतृत्व में भारत की स्वतंत्रता के निमित्त कई राष्ट्रीय आंदोलन हुए जिनमें दांडी मार्च अथवा सविनय अवज्ञा एक प्रमुख जन आंदोलन था.

12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से अपने 78 सदस्यों के साथ शुरू हुई दांडी यात्रा 241 मील पर नमक बनाने के साथ ही समाप्त हुई. आज के निबंध में हम गांधीजी के इस आंदोलन का विस्तार से अध्ययन करेंगे.

सविनय अवज्ञा आंदोलन पर निबंध

सविनय अवज्ञा आंदोलन पर निबंध | Essay on Civil Disobedience Movement | Savinay Avagya Aandolan in hindi

पृष्ठभूमि (background)

महात्मा गांधी के आव्हान पर आरम्भ किया गया असहयोग आंदोलन राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया था. पहली बार हिन्दू मुस्लिम साथ आए, समाज के सभी तबकों ने आंदोलन में हिस्सा लिया.

जाहिर है इससे गांधीजी का सत्याग्रह में विश्वास बढ़ता गया, अब वे जान चुके थे कि ब्रिटिश हुकुमत को आंदोलनों के जरिये दवाब में लाया जा सकता है.

जब फरवरी 1924 में महात्मा गांधी को ब्रिटिश सरकार ने जेल से रिहा किया तब उन्होंने समाज सुधार और खादी को बढ़ावा देने का काम किया, वे किसी तरह समाज के लोगों के साथ जुड़ा रहना चाहते थे.

वर्ष 1928 में इन्होने पुनः सक्रिय राजनीति से स्वयं को जोड़ा, यह वह समय था जब ब्रिटेन की सरकार ने अपने उपनिवेशों में जांच पड़ताल के लिए साइमन कमिशन को भेजा था.

भारत में जगह जगह इसके विरोध में प्रदर्शन हो रहे थे, गांधीजी प्रत्यक्ष रूप से इस आंदोलन से तो नहीं जुड़े मगर उनकी संवेदना आंदोलनकारियों के प्रति थी.

अगले वर्ष 1929 के दिसम्बर महीने में लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, इस बार दो घटनाएं बहुत अहम थी. राष्ट्रीय कांग्रेस ने पहली बार पूर्ण स्वराज की घोषणा की और 26 जनवरी 1930 को राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया.

कांग्रेस का नेतृत्व अब पंडित नेहरु के हाथों में आ चूका था. एक तरह से कई घटनाएं राष्ट्रभक्ति के भावों को उद्देलित करने वाली एक साथ घटित हुई.

राष्ट्रीय ध्वज के साथ स्वतंत्रता दिवस मनाने के साथ ही गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार के घ्रणित कानूनों को खत्म करवाने की शुरुआत नमक सत्याग्रह से करने का फैसला किया. सरकार ने नमक बनाने से भारतीयों को वंचित कर दिया था तथा ऊंचे दामों में इसकी बिक्री की जाती थी.

दांडी मार्च / सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण

पूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य को कांग्रेस द्वारा अपना लिए जाने के पश्चात गांधीजी पुनः सक्रिय राजनीति में लौट आए, अब गांधीजी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन की तैयारियाँ शुरू की गई, जिसके निम्नलिखित कारण थे.

साइमन कमीशन

नवम्बर 1927 में ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक कमिशन नियुक्त किया गया. जिसे साइमन कमीशन कहा गया.

यह कमीशन उपनिवेश की स्थितियों की जाँच पड़ताल के लिए इंग्लैंड भेजा गया था. इस कमीशन के सात सदस्य थे तथा सभी अंग्रेज थे. इनमें कोई भी भारतीय नहीं था.

इससे यह धारणा बनी कि अंग्रेजी सरकार इस कमीशन के माध्यम से भारतीयों के आत्मसम्मान को जानबूझकर चोट पहुचाना चाहती हैं.

फलतः कांग्रेस हिन्दू महासभा, मुस्लिम लीग सभी ने इसका विरोध करने का निश्चय किया. 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन जब बम्बई पंहुचा तो उसका प्रबल विरोध हुआ.

इसके विरुद्ध अखिल भारतीय अभियान चलाया गया. लाहौर में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन कमीशन के विरोध में एक जुलुस निकाला गया.

पुलिस द्वारा लालाजी पर लाठियां बरसाई गई जिससे वे बुरी तरह घायल हो गये और 17 नवम्बर को उनका देहांत हो गया. यदपि गांधीजी ने स्वयं इस आंदोलन में स्वयं भाग नहीं लिया था पर उन्होंने इस आंदोलन को  आशीर्वाद दिया था. सरकार की दमनकारी नीति के कारण जनता में तीव्र आक्रोश व्याप्त था.

भारतीयों के विरोध के बावजूद मई 1930 में साइमन कमिशन की रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें कही भी औपनिवेशिक स्वराज्य की बात नहीं कही गई इसलिए भारतीयों ने इसे अस्वीकार कर दिया.

पूर्ण स्वराज्य की मांग

दिसम्बर 1929 में पं जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में कांग्रेस अधिवेशन हुआ, 31 दिसम्बर 1929 को अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पास किया गया.

गांधीजी के आदेशानुसार 26 जनवरी 1930 को सम्पूर्ण देश में प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया. विभिन्न स्थानों पर सभाएं हुई और राष्ट्रीय ध्वज फहराकर तथा देशभक्ति पूर्ण गीत गाकर स्वतंत्रता दिवस मनाया.

लाहौर अधिवेशन ने कांग्रेस को उचित अवसर पर सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ करने का अधिकार दे दिया.

सविनय अवज्ञा आंदोलन / दांडी यात्रा का प्रारम्भ

स्वतंत्रता दिवस मनाए जाने के तुरंत बाद गांधीजी ने घोषणा की कि वे ब्रिटिश भारत के सर्वाधिक घ्रणित नमक कानून को तोड़ने के लिए एक यात्रा का नेतृत्व करेगे. नमक पर राज्य का आधिपत्य बहुत अलोकप्रिय था.

इसी को निशाना बनाते हुए गांधीजी अंग्रेजी शासन के खिलाफ असंतोष को संघटित करने की सोच रहे थे. हालांकि गांधीजी ने अपनी नमक यात्रा की पूर्व सूचना वायसराय लार्ड इरविन को दी थी लेकिन वे इस यात्रा के महत्व को नहीं समझ सके.

सविनय अवज्ञा आंदोलन से पूर्व महात्मा गांधी ने लार्ड इरविन के समक्ष 11 मांगों का मांगपत्र रखा गया, जिसमें पूर्ण स्वराज की मांग शामिल नहीं थी.

इस अंतिम मांग पत्र में किसानों और आम लोगों से जुड़ी छोटी छोटी मांगे थी. गांधी ने 41 दिनों तक ब्रिटिश सरकार के प्रत्युत्तर का इन्तजार किया और आखिर में 12 मार्च को दांडी मार्च की शुरुआत की.

12 मार्च 1930 को गांधीजी ने अपने 78 आश्रमवासियों को साथ लेकर साबरमती आश्रम से दांडी नामक स्थान की ओर प्रस्थान किया. उन्होंने लगभग 200 मील की यात्रा पैदल चलकर 24 दिन में तय की.

6 अप्रैल 1930 को वे दांडी पहुचे व प्रार्थना के बाद गांधीजी ने वहां पड़े नमक को उठाकर स्वयं समुद्र के पानी से नमक तैयार करके नमक कानून तोडा व सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया. इसी बीच देश के अन्य भागों में समांतर नमक यात्राएं आयोजित की गई.

सविनय अवज्ञा आंदोलन के अन्य कार्यक्रम

नमक बनाकर नमक कानून तोड़ने के अधिकृत रूप से स्वीकृत राष्ट्रीय अभियान के अलावा सविनय अवज्ञा आंदोलन में विरोध की अन्य धाराएं भी सम्मिलित थीं यथा-

  • देश के विशाल भाग में किसानों ने दमनकारी औपनिवेशिक वन कानूनों का उल्लंघन किया.
  • कुछ कस्बों में फैक्ट्री कामगार हड़ताल पर चले गये.
  • वकीलों ने ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार किया.
  • विद्यार्थियों ने सरकारी शिक्षा संस्थाओं में पढ़ने से इनकार कर दिया.
  • विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना, विदेशी वस्त्रों की होली जलाना तथा स्वदेशी का प्रयोग करना, सविनय अवज्ञा आंदोलन का एक अन्य कार्यक्रम था.
  • महिलाओं द्वारा शराब तथा विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना दिया गया.

सविनय अवज्ञा आंदोलन की प्रगति

शीघ्र ही सविनय अवज्ञा आंदोलन सम्पूर्ण देश में फ़ैल गया. लाखों लोगों ने अवैध रूप से नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा तथा विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया तथा उनकी होली जलाई गई, किसानो ने कर देने से इंकार कर दिया.

पहला चरण : सविनय अवज्ञा आंदोलन का पहला चरण 4 मार्च से सितम्बर 1930 की अवधि तक था जिसके मुख्य कार्यक्रमों में सोल्ट टेक्स न देना, शराब की दुकानों के आगे हड़ताल और चौकीदारी के टैक्स को न देना शामिल था.

दूसरा चरण : आंदोलन का दूसरा चरण अक्टूबर 1930 से मार्च 1931 तक का था इसमें शहरी व्यापारियों और उद्यमियों द्वारा ब्रिटिश हुकुमत और कांग्रेस के बीच सुलह कराने का दौर चला, अन्तः यह गांधी इरविन पैक्ट के रूप में 1931 में फलीभूत हुआ.

तीसरा चरण : गांधी के नमक सत्याग्रह आंदोलन का यह तीसरा और अंतिम चरण था जो जनवरी 1932 से अप्रैल 1934 तक चला, इस दौरान हुकुमत ने आंदोलनकारियों का दमन करना आरम्भ किया गया, अंत में कांग्रेस ने इस आंदोलन पर विराम लगा दिया.

ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति

इसके जवाब में सरकार असंतुष्टों को हिरासत में लेने लगी. नमक सत्याग्रह के सिलसिले में गांधीजी समेत लगभग 60 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया.

प्रदर्शनकारियों पर गोलिया चलाई,सत्याग्रहियों पर लाठियाँ चलाई, महिलाओं के साथ अमानवीय बर्ताव किया गया. कांग्रेस को अवैध घोषित कर दिया गया तथा समाचारपत्रों पर कठोर प्रतिबंध लगा दिया गया.

गांधी इरविन समझौता

5 मार्च 1931 को गांधीजी और वायसराय लार्ड इरविन के बीच समझौता हो गया जो गांधी इरविन समझौता के नाम से प्रसिद्ध हैं. इस समझौते की मुख्य शर्ते निम्नलिखित थीं.

  • राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया जाएगा.
  • आंदोलन के दौरान जब्त की गई सम्पति उनके स्वामियों को लौटा दी जाएगी.
  • कांग्रेस अपने सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थिगत कर देगी तथा द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी.

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन की असफलता और सविनय अवज्ञा आंदोलन पुनः प्रारम्भ

7 सितम्बर 1931 को लंदन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया. इससें गांधीजी कांग्रेस के प्रतिनिधि थे, लेकिन साम्प्रदायिकता के प्रश्न और पूर्ण स्वतंत्रता की मांग पर कोई समझौता न हो सका और 1 दिसम्बर 1931 को यह सम्मेलन समाप्त हो गया. गांधीजी खाली हाथ लौट आए.

भारत लौटकर गांधीजी ने पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ कर दिया. ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी नीति अपनाते हुए कांग्रेसी नेताओं को जेल में डाल दिया. 1932 के अंत तक लगभग 1,20,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया.

सविनय अवज्ञा आंदोलन का अंत

यह आंदोलन धीरे धीरे शिथिल पड़ गया. सरकार ने बंदियों को जेल से मुक्त कर दिया गया. अंत में मई 1934 में गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त कर दिया.

सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्व

इस आंदोलन की प्रमुख उपलब्धियां इस प्रकार रहीं.

  • इसने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को व्यापक बनाया.
  • इसने देशवासियों ने निर्भीकता, साहस, देशभक्ति, त्याग और बलिदान की भावनाओं का प्रसार किया.
  • इस आंदोलन ने स्त्रियों में जागृति उत्पन्न की.
  • इस आंदोलन ने स्वदेशी को प्रोत्साहन दिया.
  • इसके परिणामस्वरूप 1935 में भारत शासन अधिनियम पारित किया गया.

राष्‍ट्रीय नमक सत्‍याग्रह स्‍मारक

महात्मा गांधी की पूण्यतिथि पर 30 जनवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दांडी में राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक को राष्ट्र को समर्पित किया.

गुजरात के नवसारी जिले में स्थित इस स्मारक पर दांडी सत्याग्रह के 80 आंदोलनकारियों की प्रतिमाएं भी अंकित है जिन्होंने एक मुट्ठी नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ राजद्रोह किया था. मेमोरियल में बने 24 कलात्मक भित्ति चित्र 1930 के नमक सत्याग्रह की यादों को ताजा कर देते हैं.

  • गोलमेज सम्मेलन की जानकारी
  • चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जीवन परिचय
  • पूना पैक्ट के बारे में जानकारी
  • अरुणा आसफ अली का जीवन परिचय
  • कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन 1929

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सविनय अवज्ञा आंदोलन का इतिहास Civil Disobedience Movement History in Hindi

सविनय अवज्ञा आंदोलन का इतिहास Civil Disobedience Movement History in Hindi

इस लेख मे हमने सविनय अवज्ञा आंदोलन का इतिहास Civil Disobedience Movement History in Hindi हिन्दी मे पढ़ सकते है। इसमे आप पढ़ेंगे इसकी शुरुवात कैसे हुई?, दांडी मार्च, और गांधी जी का देहांत के विषय में पूरी जानकारी।

Table of Content

12  मार्च 1930 को, स्वतंत्रता संग्राम के नेता मोहनदास करम चंद गाँधी ने नमक पर ब्रिटिश सरकार के एकाधिकार (नमक कानुन) के विरोध में समुद्र किनारे एक उग्र मार्च शुरू किया। भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बहुत बडा साहसिक कार्य था।

सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुवात Starting of Civil Disobedience Movement

ब्रिटिश हुकूमत के नमक अधिनियमों (कानूनों) के अनुसार भारतीय लोगों के नमक एकत्र करने और बेचने से भारतीयों को प्रतिबंधित किया था।

नागरिकों को ब्रिटिश से महत्वपूर्ण सामग्रियां सौर खाद्य पदार्थ खरीदने के लिए मजबूर किया गया और नमक पर भारी कर भी लगा दिया गया। हालांकि भारत के गरीबों को कर (tax) से अधिक नुकसान, भारतीयों को नमक की बहुत आवश्यकता थी।

नमक अधिनियमों को चतुरतापूर्वक उपेक्षा करते हुए, गांधी जी ने तर्क दिया कि बहुत से भारतीयों के लिए ब्रिटिश कानून को अहिंसक रूप से तोड़ने के लिए एक सरल तरीका अपनाना होगा। उन्होंने ब्रिटिश नमक नीतियों के प्रति बिरोध को अपने सत्याग्रह की नये अभियान या सामूहिक असहमति के लिए एकीकृत विषय माना।

दांडी यात्रा Dandi March

12 मार्च 1930 को, गांधी जी ने साबरमती से 78 अनुयायियों के साथ अरब सागर के तटीय शहर दांडी के लिये 241 मील (390 किलोमीटर) की यात्रा पर निकल पड़े। वहां, गांधी और उनके समर्थकों ने समुद्री जल से नमक बनाकर ब्रिटिश नीति की अवहेलना की। सारे रास्ते गांधी ने बड़ी भीड़ को आकर्षित किया।

दांडी यात्रा के दौरान हर गुजरते दिन के साथ लोगों की संख्या बढ़ती गई और लोग नमक सत्याग्रह में शामिल होते गये। जब वे सभी 5 अप्रैल को दांडी पहुंचे  तो उस समय गांधी जी हजारों लोगों की भीड़ के मुखिया थे। गांधीजी ने सभी सदस्यों के साथ मिलकर अगली सुबह समुद्र पर नमक बनाया और ब्रिटिश नमक कानून को तोड़ा। उन्हें साबरमती आश्रम से दांडी पहुंचने में लगभग 25 दिन लगे।I

उन्होंने समुद्र तट की समतल भूमि पर नमक बनाने की योजना बनाई, जिसमें प्रत्येक उच्च ज्वार, समुद्र नमक के टुकड़े साथ घिरा हुआ था, लेकिन पुलिस ने बने हुए नमक को समुद्र में फेक दिया। फिर भी, गांधी जी नीचे पहुंचे और मिट्टी से प्राकृतिक नमक का एक छोटा गांठ बाहर उठाया और ब्रिटिश नमक कानून की अवहेलना की।

दांडी और अन्य तटीय शहर मुंबई और कराची में हजारों लोगों ने उनका नेतृत्व किया  और भारतीय राष्ट्रवादियों में नमक बनाने के लिये नागरिकों की भीड़ उमड़ पड़ी। सविनय अवज्ञा पूरे भारत में फैल गया, जल्द ही इसमें लाखों भारतीयों शामिल हो गये  और तब ब्रिटिश अधिकारियों ने 60,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया।

गांधीजी को 5 मई को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन सत्याग्रह उनके बिना भी जारी रहा। 21 मई को सरोजिनी नायडू ने मुंबई के करीब 150 मील उत्तर की ओर धरसाना में 2500 यात्रियों के साथ बड़ी धैर्य के साथ नमक कानून तोड़ा।

कई सेकड़ों ब्रिटिश नेतृत्व वाले भारतीय पुलिस कर्मियों ने उन्हें रोका और प्रदर्शनकारियों को बुरी तरह से पीटा। अमेरिकी पत्रकार वेब मिलर द्वारा दर्ज की गई इस घटना ने भारत में ब्रिटिश नीति के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय आवाज़ उठाई।

जनवरी 1931 में, गांधी को जेल से रिहा किया गया था। बाद में उन्होंने लॉर्ड इरविन के साथ मुलाकात की, भारत के भविष्य को देखते हुए लंदन सम्मेलन में बातचीत की गई और उसके बदले में सत्याग्रह को बंद करने की मांग की गई, और कुछ शर्तों के तहत गाँधी जी और इरविन समझौता हुआ।

गांधी जी की मृत्यु Death of Gandhi (Bapu)

अगस्त में, गांधी जी, राष्ट्रवादी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में सम्मेलन में गये पर बैठक निराशाजनक थी वहां एक हिंदू उग्रवादी नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी। लेकिन ब्रिटिश नेताओं ने उन्हें एक बल के रूप में स्वीकार किया था।

जिसे वे अनदेखा नहीं कर सकते थे। आखिरकार अगस्त 1947 में भारत को आजादी दी गई और छह महीने के बाद एक हिंदू उग्रवादी ने गांधी जी की हत्या कर दी।

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Not Hindu ugravadi , only ugravadi

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सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत – Civil Disobedience Movement Started In

महात्मा गांधी जी द्धारा साल 1930 में ब्रिटिश हूकुमत से भारतीयों को स्वतंत्रता दिलवाने के लिए यह आंदोलन शुरु किया गया था। यह आदोंलन स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए चलाए गए एक बड़े जनआंदोलनों में एक था।

साल 1929 में लाहौर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार से पूर्ण स्वराज की मांग की थी।

लेकिन ब्रिटिश सरकार ने जब उनकी मांगे नहीं मानी तब गांधी जी ने स्वाधीनता प्राप्ति की मांग पर जोर देने के लिए 12 मार्च, 1930 को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ इस आदोंलन की शुरुआत कर दी। महात्मा गांधी जी ने इस जनआंदोलन की शुरुआत 12 मार्च, 1930 को दांडी यात्रा के साथ की।

इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्धारा बनाए गए नमक कानून को तोड़ना था, इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार के आदेशों की अवेहलना करना था।

दरअसल, उस समय ब्रिटिश सरकार ने नमक अधिनियम के तहत भारतीयों के आहार में नमक एकत्र करने एवं इसे बेचने पर पूरी तरह बैन लगा दिया था एवं ब्रिटिश सरकार ने नमक बनाने पर अपना एकाधिकार कर कस्टम ड्यूटी यानि कि आबकारी कर लगा दिया था, जिससे अंग्रेजों का खजाना तो बढ़ता गया, लेकिन नमक पर कर लगने से भारतीयों को काफी नुकसान हुआ।

इसके बाद गांधी जी ने ब्रिटिश कानून के इस नमक अधिनियम को अहिंसक तरीके से तोड़ने का तरीका अपनाया। दरअसल, उस समय नमक का मुद्दा हर भारतीय से जुड़ा था एवं गरीब किसानों का प्रभावित कर रहा था।

इसलिए नमक जैसी रोज में इस्तेमाल किए जाने वाली वस्तु पर कर लगाने के विरोध में किए गए आंदोलन से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बड़े स्तर पर भारतीयों का समर्थन हासिल किया जा सकता था।

इसलिए नमक को सबसे सशक्त एवं सर्वमान्य मुद्दा मानते हुए गांधी जी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पूर्ण स्वराज प्राप्ति के उद्देश्य से सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ दिया।

दांडी यात्रा से हुई सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत – Why Was Civil Disobedience Movement Launched

महात्मा गांधी जी ने अपने इस जनआंदोलन की शुरुआत  12 मार्च, 1930 को साबरमती आश्रम से अपने 78 अनुयायियों के साथ दांडी की पैदल यात्रा के साथ की।

गांधी जी अपने समर्थकों के साथ अरब सागर के पास बसे दांडी के लिए करीब 241 मील की यात्रा पर निकल पड़े और उन्होंने करीब 24 दिनों में अपनी यह पदयात्रा पूरी की और 5 अप्रैल को दांडी पहुंचे।

इसके बाद 6 अप्रैल को महात्मा गांधी जी ने समुद्रतट में नमक बनाकर ब्रिटिश हुकूमत के नमक अधिनियम का उल्लंघन किया और ब्रिटिश शासकों के नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया।

दरअसल, ब्रिटिश सरकार विदेश से आयात नमक को भारत में बेचकर लाभ कमाना चाहती थीं, लेकिन गांधी जी समुद्र के किनारे भारतीयों द्धारा नमक बनाना अपना मौलिक अधिकार मानते थे, इसलिए उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ समुद्र के किनारे जाकर खुद नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ काम किया, और यहीं से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई।

गांधी जी के इस नमक सत्याग्रह के तहत सभी देशवासियों को खुलेआम ब्रिटिश सरकार के नमक कानून का उल्लंघन कर अवैध रुप से एवं अहिंसक तरीके से नमक बनाने की छूट दे दी गई, लेकिन इस दौरान ब्रिटिश पुलिस ने नमन बनाने वाले आंदोलनकारियों पर लाठी बरसाकर इस आंदोलन को हिंसक बना दिया, इसमें करीब 300 लोग बुरी तरह घायल हो गए।

इसके बाद गांधी जी समेत कई लोगों की गिरफ्तारी हुईं, हालांकि गिरफ्तारी के बाद भी देश की जनता ने इस आंदोलन को जारी रखा था।

हालांकि, बाद में गांधी जी की रिहाई के बाद कुछ शर्तों के तहत गांधी जी और लॉर्ड इरविन के बीच समझौता किया गया और फिर इस आंदोलन को बंद किया गया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत होने वाली गतिविधियां –

गांधी जी के द्धारा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चलाए गए नमक सत्याग्रह आंदोलन में बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी भागीदारी निभाई। इसके तहत देश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों ने जनसमूह बनाकर ब्रिटिश सरकार के नमक कानून का उल्लंघन किया। सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत लोगों ने निम्नलिखित गतिविधियों को अंजाम दिया, जो कि इस प्रकार है-

  • इस आंदोलन के तहत नमक कानून का उल्लंघन कर खुद के द्धारा नमक बनाए जाने का फैसला लिया।
  • भारत में सभी देशवासियों ने अपने बच्चों को सरकारी नीतियों एवं सरकारी कार्यालयों का जमकर बहिष्कार किया। सरकारी नौकरी करने वाले भारतीय कर्मचारियों ने दफ्तर जाना छोड़ा दिया।
  • इस दौरान लोगों द्धारा सरकारी उपाधियों, सरकारी शिक्षाओं एवं सरकारी सेवाओं का जमकर उल्लंघन किया गया। भारतीयों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल भेजना बंद कर दिया, ताकि अंग्रेजों को भारतीयों की एकता की ताकत समझ आ सके एवं भारतीयों की गुस्सा से उन्हें इस बात का एहसास हो सके कि अब उनका शासन भारत पर ज्यादा दिन तक नहीं चल सकेगा।
  • इस आंदोलन के तहत देश के सभी नागरिकों ने ब्रिटिश शासकों को किसी भी तरह का टैक्स देने से मना कर दिया एवं ब्रिटिश सरकार की नीतियों का उल्लंघन किया।
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत बड़ी संख्या में महिलाओं द्धारा विदेशी शराब, अफीम एवं अन्य नशीले पदार्थों का विरोध किया गया और विदेशी कपड़े की दुकानों पर जाकर धरना-प्रदर्शन किया गया।
  • गांधी जी के इस आंदोलन के दौरान भारतीय लोगों द्धारा विदेशी वस्तुओं एवं विदेशी कपड़ों का पूरी तरह बहिष्कार किया गया एवं विदेशी वस्तुओं को जलाकर नष्ट किया गया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के मुख्य कारण – Causes Of Civil Disobedience Movement

ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गांधी जी द्धारा सविनय अवज्ञा आंदोलन  को शुरु करने के निम्नलिखित कारण थे, जो कि इस प्रकार हैं-

  • साल 1929 में कांग्रेस के अधिवेशन में जब नेहरू और गांधी जी की पूर्ण स्वराज के प्रस्ताव को ब्रिटिश सरकार द्धारा अस्वीकृत कर दिया था, ऐसी स्थिति में भारतीयों के पास आंदोलन करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था, इसलिए पूर्ण स्वराज को लेकर गांधी जी ने ब्रिटिशों के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ दिया था।
  • देश में आर्थिक मंदी और चीन की क्रान्ति के प्रभाव ने दुनिया के कई अलग-अलग देशों में क्रांति पैदा कर दी थी एवं किसानों की स्थिति काफी दयनीय हो गई थी, जिसके चलते भारत की जनता में ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ आक्रोश पैदा हो गया था। वहीं गांधी जी ने समय की नजाकत को समझते हुए लोगों के इस आक्रोश को सविनज्ञ अवज्ञा आंदोलन छेड़ दिया।
  • हिन्दुस्तान को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करवाने के लिए उन्हें हिन्दुस्तानियों की ताकत का एहसास करवाना जरूरी था, ऐसे में सामूहिक रुप से शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अंग्रेजों के बनाए कानूनों को तोड़ने से अंग्रेज सरकार पूरी तरह हिल गई थी।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के मुख्य प्रभाव – Effects Of Civil Disobedience Movement

  • गांधी जी द्धारा चलाए गए इस सविनय अवज्ञा आंदोलन ने ब्रिट्रिश सरकार को भारतीयों की शक्ति का एहसास करवा दिया था। यहां तक की इस आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार ने राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के कुछ बड़े नेताओं को लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में आने का भी निमंत्रण दिया था, जो कि भारतीयों के लिए काफी बड़ी बात थी। हालांकि, वे लोग इस सम्मेलन में शामिल नहीं हुए थे।
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान देश की महिलाओं ने भी बड़े स्तर पर अपनी भागीदारी निभाई थी। यह एक ऐसा पहला आंदोलन था, जब महिलाओं ने पहली बार घरों से निकलकर देश की आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया था, इस आंदोलन के दौरान कई हजार महिलाओं को जेल की सजा भी भुगतनी पड़ी थी।
  • इस आंदोलन के बाद ही देश की स्वाधीनता के प्रति सभी भारतीयों के मन में एक आशा की किरण जाग गई थी।
  • महात्मा गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद सभी भारतीय अपने हक के लिए निडर होकर खड़े हुए थे।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के असफल होने के प्रमुख कारण – Why Civil Disobedience Movement Failed

  • इस आंदोलन का भारतीयों पर व्यापक प्रभाव पड़ा था, बड़े स्तर पर लोग इस आंदोलन के भागीदार बने थे। इसके माध्यम से ब्रिटिश सरकार की नींव भी कमजोर पड़ गई थी, लेकिन इस आंदोलन के तहत कांग्रेस ने जनसमूह का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया और न ही उन्हें सही दिशा दी। जिसके चलते इस आंदोलन का असर धीमे-धीमे खत्म होने लगा था।
  • गांधी जी द्धारा शुरु किए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन से व्यापारी वर्ग एवं मुस्लिम समुदाय धीमे-धीमे पीछे हट गए थे।

करीब 10 महीने तक दो चरणों में चले गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन लोगों के अंदर ब्रिटिश सरकार के प्रति और अधिक नफरत एवं आक्रोश भरने के लिए जाना जाता है। वहीं इस आंदोलन को शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त करने के लिए गांधी और लॉर्ड इरविन के बीच साल 1931 में एक एक समझौत भी हुआ।

वहीं इस दौरान भगत सिंह समेत देश के कई महान क्रातिकारियों को फांसी होने वाली थी। हालांकि, गांधी जी ने इस समझौते के तहत भगत सिंह की फांसी नहीं रोकी, जिससे कई जगह लोगों ने गांधी जी के प्रति अपना गुस्सा भी जताया। बहरहाल, गांधी जी के इस आंदोलन के बाद देश में हर भारतीय के मन में स्वाधीनता पाने की लहर और अधिक तेज हो गई थी।

  • Indian Independence Movement
  • Swachhata Hi Seva Movement
  • Khalistan Movement

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Hindi Jaankaari

(सविनय अवज्ञा आंदोलन) Civil Disobedience Movement in Hindi

civil_disobedience_movement_in_hindi

सन 1947 को भारत देश आजाद हुआ । लेकिन ये आजादी अचानक से प्राप्त नहीं हुई । हजारों लाखों लोगों के बलिदान उनके संघर्ष का फल है ये आजादी । इस आजादी को प्राप्त करने के लिए देश में कई आंदोलन चलाए गए । इन प्रतिवाद में से एक था ब्रिटिश शासन के विरुद्ध Bapu Mahatma gandhi के संचलन में चलाया गया सविनय अवज्ञा आंदोलन। जिसकी शुरुआत 1930 में गाँधी जी द्वारा किए जा रहे दांडी मार्च से हुई । savinay avagya andolan in hindi , in english , In marathi, in tamil, in PDF, में पूरी जानकारी या upsc और class 10 से related कोई information या meaning in hindi जानना चाहते है , तो ये सब जानकारी हम आपको नीचे लिखे आर्टिकल में देंगे ।

Date 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी जी एवं उनके साथ 78 उनके साथियों ने ब्रिटिश सरकार ले खिलाफ एक उग्र मार्च आरंभ हुआ।ये मार्च साबरमती आश्रम से लेकर अहमदाबाद से 385 कि मी की दूरी पर भारत के पश्चिमी तट पर स्तिथ एक गाँव तक पैदल चल कर पूरा किया गया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन कब हुआ था ?-Information About Civil Disobedience Movement

अंग्रेजी सरकार द्वारा भारतीयों पर नामक इकट्ठा करने और उसको बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया गया । साथ साथ नमक पर बहुत अधिक कर लगा दिया गया जबकि नमक भोजन का आवश्यक तत्व होता है जिस कारण नागरिकों में असंतोष और बढ़ गया ।

सविनय अवज्ञा आंदोलन का आरंभ

  • गाँधी जी के नेतृत्व में 6 अप्रैल in 1930 को Civil Disobedience Movement की औपचारिक शुरुआत हुई । इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए कानून को तोड़ना तथा उनके नियमों को ना मानना था ।
  • इस आंदोलन की शुरुआत गाँधी जी द्वारा किए गए मार्च से हुए । ये यात्रा date 12 मार्च से शुरू होकर 6 अप्रैल को 24 दिन में पूरी  हुए । उस समय अंग्रेजी हुकुमत ने हिंदुस्तानियों पर नमक बनाने की रोक लगा दी । समुद्र के किनारे पहुंचकर गांधी जी ने नमक बनाया और कानून तोड़ दिया ।
  • अंग्रेजों द्वारा बनाया गया ये कानून उतना ही बेबुनियाद था जितना की उनके दूसरे कानून थी ।
  • सरकार विदेश से नमक माँगा कर भारत में बेचना चाहती थी । जिससे उनके देश को आर्थिक लाभ हो सके । लेकिन गांधी जी मानते थे की namak बनाना भारतीयों का अधिकार है इसलिए वे स्वयं समुद्री किनारे पर जाकर नमक बनाने लगे ।
  • यही से सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ और पूरे देश में फैल गया ।
  • In Peshawar, खान अब्दुल गफ्फार खान ने इस protest का नेतृत्व किया ।
  • North West Part से shuru होकर ये विरोध in north east india तक फैल गया ।
  • साल 1922 के चौरा चौरी कांड के कारण असहयोग आंदोलन को खतम कर दिया गया जिस कारण लोगों में आक्रोश फैल गया । तभी से इस protest की शुरुआत हो गई थी ।

Causes of Civil Disobedience Movement in India

  • सन 1929 में लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की बैठक हुई जहाँ देश के बड़े नेता शामिल थे । इस बैठक में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित किया गया । और अंग्रेजों से purna swaraj  मांग की गई । धीरे – धीरे ये नारा पूरे देश में फैल गया जिससे इस campaign  को और हवा मिली ।
  • असहयोग आंदोलन उस समय का सबसे सफल आंदोलन था लेकिन जब असहयोग आंदोलन को बंद कर दिया गया तो लोगों में बहुत आक्रोश फैल गया । इस आक्रोश को शांत करने के लिए इस campaign को शुरू किया गया ।
  • Simon Comission के खिलाफ चलाए गए विरोध में लोगों ने अपना पूरा साथ दिया इसी कारण जब इस आंदोलन को शुरू किया गया तो  लोगों एकजुट होकर सामने आए ।
  • 1929 में देश की बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए इस आंदोलन को लाने का सुझाव दिया गया ।

Features of Civil Disobedience Movement

ग्यारह सूत्रीय मांगे.

लाहौर में हुई बैठक में देश के बड़े नेताओ द्वारा कुछ मांगे बनाई गई जिन्हे “young  india ” के लेख में गाँधी जी द्वारा प्रकाशित कर अंग्रेजों के सामने रखा गया जिन्हे मानने के लिए 31 जनवरी 1930 तक का समय दिया गया । ये मांगे इस प्रकार थी

आम नागरिक से जुड़े मुद्दे

  • Civil Services & सेना पर होने वाले खर्च को 50 % तक कम किया जाए।
  • मादक पदार्थों की बिक्री पूरी तरह बंद कर दी जाए ।
  • Post Reservation Bill लगाया जाए ।
  • सभी राजनैतिक बंदियों को जेल से मुक्त कर दिया जाए ।
  • अपनी सुरक्षा करने के लिए भारतीयों को हथियार रखने का लाइसेंस दिया जाए ।
  • C. I .D  को नियात्रित किया जाए ।

बुनकरों के लिए मांगे

  • विदेशी वस्त्रों के आयात पर रोक लगा दी जाए ।
  • समुद्री रास्तों से सामान लाने ले जाने के लिए एक सुरक्षा विधेयक लागू किया जाना चाहिए ।
  • रुपए की विनिमय डर घटाई जाए

किसानों के लिए मांगे

  • नमक पर सरकार का एकाधिकार खतम होना चाहिए और namak कानून को पूरी तरह समाप्त कर देना चाहिए ।
  • किसानों पर लगाई जाने वाली लगान को आधा कर देना चाहिए ।

Role of Women in Civil Disobedience Movement

  • दांडी यात्रा में किसी भी महिला को सम्मिलित ना किया जाने पर उनमे रोष था । इसलिए कमला देवी चटोपाध्याय की अपील पर इस आंदोलन में महिलाओं को शामिल किया गया है ।
  • सरोजिनी नायडू इस आंदोलन में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला थी ।
  • तदुपरांत कमला नेहरू,रानी जुत्शी, सत्यवती, अवंतिका बाई गोखले, हंसा मेहता, पार्वती बाई, लक्ष्मीपति, लीलावती मुंशी, दुर्गाबाई देशमुख सहित लगभग 1500 महिलायें इस स्वतंत्र ता संग्राम में कूद गई ।
  • हथियारों की जगह उन्होंने मिट्टी तांबे और पीतल के बर्तनों तथा वर्दी की जगह साड़ी का उपयोग किया ।

Impact of  सविनय अवज्ञा आंदोलन | Success and failure

  • British , भारतीयों को हमेशा छोटा समझते थे , लेकिन इस आंदोलन का उनपर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा । उन्होंने मांगों का हाल निकालने के लिए Indian national Congress के बड़े नेताओं को London के गोलमेज़ सम्मेलन में शामिल होना का न्योता दिया ।
  • अब देश का नागरिक स्वतंत्रता के लिए सचेत हो चुका था इसलिए पूरे देश में लोगों ने एक जुट होकर इस Movement में हिस्सा लिया ।
  • इस आन्दोलन के सहारे लोगों में एक उम्मीद की लहर दौड़ पड़ी और हर वर्ग का व्यक्ति इसमें शामिल होगया। चाहे वह अमीर हो गरीब हो , किसान हो , मजदूर हो , बालक हो या बुजुर्ग हो । सभी में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता आ गई थी ।
  • लोग समझ गए थे की उन्हे उनके अधिकारों के लिए लड़ना होगा और angreji sarkaar की बातों में नहीं फँसना है ।
  • इस दौरान पूरे देश के हजारों लोगों को जेल में डाल कर बंदी बना दिया गया था ।

Limitations of Civil Disobedience Movement

  • आरंभ में लोगों ने सरकारी कामों को करने से माना कर दिया और उनका बहिष्कार किया किन्तु धीरे – धीरे ये कम होता गया ।
  • मुस्लिम समुदाय का इस आंदोलन में भाग ना लेना इस आंदोलन की बहुत बड़ी कमी रही । देश के कुछ ही गांवों के मुस्लिम ही इसमें शामिल हुए और अधिकतर इससे दूर ही रहे ।
  • दूसरे चरण में व्यापारी वर्ग भी इस आंदोलन से पीछे हट गया ।
  • INC द्वारा आंदोलन की शुरुआत तो कर दी गई । लेकिन एक अच्छे नेतृत्व एवं और मार्गदर्शन के अभाव में देश की उत्साहित जनता को सही दिशा नहीं मिल पाई जिससे धीरे – धीरे Movement शांत हो गया ।

सविनय अवज्ञा आंदोलन का अंत | work of sarojini naidu

  • ये आंदोलन 2 चरणों में चलाया गया । जब पहली बार 1930 में वाइसराय Lord Irvin द्वारा Golmez आंदोलन का न्योता दिया गया तब gandhi जी ने इसमें जाने से माना कर दिया ।
  • इसके बाद 1931 में Lord Irvin ने एक meeting रखी । 5 मार्च 1931 को इस इस मीटिंग में Irvin और gandhi जी के बीच कुछ समझोतें किये गए । इस समझोते में सविनय अवज्ञा आंदोलन की समाप्ति का भी पहलू था इस तरह date 5 मार्च 1951 को civil disobedience movement का अंत हो गया ।
  • सरोजिनी नायडू ने इस आंदोलन में बहुत योगदान दिया था|

Difference Between Non Cooperation and Civil Disobedience

Non co-operation movement.

  • इसका मुख्य उद्देश्य हिन्दू और मुस्लिम को एक करना था ।
  • इसमें सरकार के साथ किसी भी प्रकार का सहयोग नहीं किया जाएगा।
  • इसकी शुरुआत 1921 में की गई ।
  • इस आंदोलन में महिलाओं की कोई भागीदारी नहीं थी ।

Civil Disobedience Movement

  • इसका मुख्य उद्देश्य पूर्ण स्वराज का अधिकार था ।
  • इसके सरकार द्वारा बनाए गए अधिनियमों की अवहेलना की गई ।
  • ये 1930 में प्रारभ हुआ ।
  • इस आंदोलन में महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया ।

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Savinay Awagya Andolan | सविनय अवज्ञा आंदोलन | Civil Disobedience Movement in Hindi | दांडी मार्च-Dandi March in Hindi

Savinay awagya andolan | सविनय अवज्ञा आंदोलन | civil disobedience movement in hindi | दांडी मार्च-dandi march in hindi, 1. सविनय अवज्ञा आंदोलन  (savinay awagya andolan) की पृष्ठभूमि  | सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण , (a) असहयोग आन्दोलन  (asahyog andolan).

गाँधी जी द्वारा 1 अगस्त 1920 को औपचारिक रूप से असहयोग आंदोलन (Non Cooperation Movement) की शुरुआत की गई थी। इस आंदोलन का लक्ष्य स्वराज की प्राप्ति था। लेकिन असहयोग आन्दोलन को लगभग एक साल से ज्यादा का समय हो चूका था और अंग्रेज सरकार समझौता करने के लिए राजी नहीं थी। इस कारण गांधीजी पर राष्ट्रीय  स्तर पर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का दबाव पड़ने लगा था।

गाँधी जी द्वारा यह आंदोलन सूरत के बारदोली तालुका से शुरू किया जाने वाला था। लेकिन संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जिले में घटित चौरी चौरा की घटना ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को 1930 तक के लिए टाल दिया।

Read more – असहयोग आन्दोलन

Read more - चौरी चौरा की घटना

(b) स्वराज दल

1 जनवरी 1923 को C.R.Das और मोतीलाल नेहरू द्वारा ‘ कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी’ का गठन किया गया था। इसी को बाद में  ' स्वराज पार्टी' के   नाम से जाना गया।   C.R.Das  इसके अध्यक्ष और मोतीलाल नेहरू इसके महामंत्री थे।

इन्होने विधान परिषद् में हिस्सा लेने का समर्थन किया और चुनाव में अच्छी सफलता प्राप्त की। विधान परिषद् में सरकार   को पराजित करने का उल्लेखनीय प्रयास   किया   और अंग्रेजो के असली चेहरे को जनता के सामने लेन का कार्य किया । स्वराजियों के इस कार्य से   लोगो में अंग्रेजो के प्रति घृणा का विकास हुआ और भावी आंदोलन के लिए भूमि तैयार हुई।

(c) साइमन कमीशन  (Simon Commission)

भारत में सांविधानिक सुधार के प्रश्न पर विचार करने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में 8 नवम्बर, 1927 को एक आयोग नियुक्त किया गया। इसका औपचारिक नाम “भारतीय संवैधानिक आयोग ” था। इसे आमतौर पर सर जॉन साइमन के नाम पर ‘साइमन कमीशन' (Simon commission) कहा गया।

साइमन आयोग का मुख्य कार्य भारत की संवैधानिक प्रगति अर्थात सरकारी व्यवस्था, शिक्षा एवं अन्य मुद्दों का अध्ययन कर उसमे सुधार एवं सुझाव पर रिपोर्ट देना था।

साइमन कमीशन में अध्यक्ष सहित कुल 7 सदस्य (ब्रिटिश सांसद) थे। सभी सदस्य अंग्रेज थे। इस कमीशन में एक भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं किया गया था। इस कारण साइमन कमीशन को 'श्वेत कमीशन' (White Commission) भी कहा जाता है।

साइमन कमीशन में एक भी भारतीय सदस्य को शामिल न किये जाने के कारण भारतीयों में क्षोभ उत्पन्न होना स्वाभाविक था। इस क्षोभ ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए पृष्ठभूमि प्रदान की।

Read more – साइमन कमीशन

(d) कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन, 1929

31 दिसम्बर 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन तत्कालीन पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर में रावी नदी के तट पर हुआ था । इस ऐतिहासिक अधिवेशन में कांग्रेस के ‘ पूर्ण स्वराज ’ का घोषणा - पत्र तैयार किया गया तथा ' पूर्ण स्वराज ' को कांग्रेस का मुख्य लक्ष्य घोषित किया गया । 26 जनवरी, 1930 को पहला स्वाधीनता दिवस घोषित किया गया।

इस अधिवेशन में कांग्रेस ने कांग्रेस कार्यसमिति को सविनय अवज्ञा आंदोलन ( नागरिक अवज्ञा आंदोलन ) प्रारंभ करने का पूर्ण उत्तरदायित्व सौंपा गया।

Read more - कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन , 1929

2. सविनय अवज्ञा आंदोलन (Savinay Awagya Andolan) की शुरुआत

(a) गाँधीजी की 11 की सूत्रीय मांगे -.

2 मार्च 1930 को गांधीजी ने वाइसराय को पत्र लिख कर अंग्रेजी शासन के दुष्प्रभावों का उल्लेख किया। साथ ही   ‘ यंग इंडिया’ में लेख प्रकाशित करके  अपनी 11 सूत्रीय मांगो को सरकार के सामने रखा। गाँधी जी ने यह   भी कहा की अगर सरकार   31 जनवरी, 1930 तक  इन 11 सूत्रीय मांगो को पूरा   करने के लिए कोई प्रयास नहीं करती है तो वे नमक कानून का उल्लंघन करेंगे।

गाँधीजी  की  11 की सूत्रीय मांगे -

  • सिविल सेवाओं और सेना के खर्चे में 50% तक की कमी की जाये।
  • नशीली वस्तुओं के विक्रय पर पूरी तरह से रोक लगायी जाये।
  • C.I.D विभाग पर सार्वजानिक नियंत्रण हो या उन्हें समाप्त कर दिया जाये।
  • शस्त्र कानून में परिवर्तन किया जाये और भारतियों को आत्मरक्षा के लिए हथियार  रखने का अधिकार दिया जाये।
  • सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाये।
  • डाक आरक्षण बिल पास किया जाये। 
  • रुपये की विनिमय दर घटा कर 1 शिलिंग 4 पेन्स की जाये।
  • रक्षात्मक शुल्क लगाए जाये और विदेशी कपड़ो के आयात पर नियंत्रण रखा जाए।
  • तटीय यातायात रक्षा विधेयक पास किया जाए।
  • लगान में 50% की कमी की जाये।
  • नमक कर समाप्त किया जाये और नमक पर सरकारी एकाधिकार समाप्त कर दिया जाये।

(b) दांडी मार्च (12 मार्च से 6 अप्रैल , 1930) | Dandi March in Hindi

फ़रवरी, 1930 तक  सरकार द्वारा गाँधी जी के   11 सूत्रीय मांगो का कोई जबाब नहीं दिया गया। अतः गाँधी जी ने नमक कानून तोड़ने के लिए आंदोलन प्रारंभ   करने का निश्चय किया।

गांधीजी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम   के अपने   78  सहयोगियों के साथ डंडी के लिए पदयात्रा प्रारंभ की।  इस पदयात्रा को डंडी मार्च ( Dandi March in Hindi) के नाम से जाना जाता है।  गाँधी जी गुजरात   के गावों में से होते हुए 24 दिनों में 240 किलोमीटर की पदयात्रा करते हुए 5 अप्रैल को दांडी पहुंचे   और  6 अप्रैल ,1930 को प्रातः काल महात्मा गाँधी ने समुद्र तट पर नमक बनाकर नमक कानून को भंग किया। यहीं से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत हुई।

सरदार पटेल ने आगे-2 चलकर लोगों को गाँधीजी के स्वागत के लिये तैयार किया। इस यात्रा के दौरान गांधीजी ने कई जनसभाओं को संबोधित किया और सैकड़ों लोगो ने उनका सन्देश सुना। गांधीजी के कहने पर गुजरात के   300   ग्राम अधिकारियो द्वारा त्यागपत्र दे दिया गया।

(c) गांधीजी द्वारा सविनय अवज्ञा  आंदोलन के   लिए तय किये गये कार्यक्रम

9 अप्रैल को गांधीजी ने एक निर्देश जारी करके आंदोलन के लिए निन्म लिखित कार्यक्रम तय किये  -

  • ·   जहां कहीं भी संभव हो लोग नमक कानून तोड़कर नमक तैयार करे।
  • ·    शराब की दुकानों, विदेशी वस्त्रो की दुकानों तथा अफीम के ठेकों के सामने धरने आयोजित किये जाये। 
  • ·    यदि हम लोगो के पास पर्याप्त शक्ति है तो हम कर अदा करना अस्वीकार कर सकते है।
  • ·    वकील अपनी वकालत छोड़ सकते है।
  • ·    आम जनता अपने मुकदमों की याचिकाओं को कोर्ट में न ले जा कर न्यायालयों का बहिष्कार कर सकते है।
  • ·    सरकारी कर्मचारी अपने पदों से त्यागपत्र दे सकते है।
  • ·   छात्र, सरकारी स्कूल और कॉलेजों का बहिष्कार करे।
  • ·    लोग घरों में चरखा कातें और सूत बनाये।
  • ·    इन कार्यक्रमों में अहिंसा को सर्वोपरि रखा जाये।

3. सविनय अवज्ञा आंदोलन (Savinay Awagya Andolan) की प्रगति

11. सविनय अवज्ञा आंदोलन से जुड़े व्यक्तित्व.

  • महात्मा गाँधी
  • सी . राजगोपालाचारी
  • वल्लभभाई पटेल
  • पंडित जवाहर लाल नहेरू
  • मोतीलाल नेहरू
  • राजेन्द्र प्रसाद
  • अब्दुल बारी 
  • सरोजिनी नायडू
  • के. कलप्पन
  • खान अब्दुल गफ्फार खान
  • सूर्यसेन

Q. सविनय अवज्ञा आंदोलन कब आरंभ हुआ ?

 A. सविनय अवज्ञा आंदोलन की औपचारिक घोषणा 6 अप्रैल 1930 को गाँधी जी के नेतृत्व में हुई थी ।

Q. सविनय अवज्ञा आंदोलन कब और किसके नेतृत्व में शुरू हुआ था ?

 A. सविनय अवज्ञा आंदोलन 6 अप्रैल , 1930 को   गाँधीजी के नेतृत्व में शुरू हुआ था ।

Q. सविनय अवज्ञा आंदोलन क्यों चलाया गया ?

 A. सविनय अवज्ञा आंदोलन पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति के लिए चलाया गया था।

Q. कौन सा आंदोलन दांडी मार्च से शुरू हुआ था ?

 A. सविनय अवज्ञा आंदोलन दांडी मार्च से शुरू हुआ था ।

Q.सविनय अवज्ञा आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था ?

 A. सविनय अवज्ञा आंदोलन का मुख्य उद्देश्य पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति था।

Q. सविनय अवज्ञा आंदोलन को अंतिम रूप से कब वापस लिया गया ?

A.  अप्रैल  1934

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5 टिप्‍पणियां:

essay on civil disobedience movement in hindi

सविनय अवज्ञा आंदोलन के कुछ पॉइंट्स दिख नही रहे है ।।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के कुछ पॉइंट्स दिख नही रहे हैं ।। कृपया मदत कीजिए ।।

Hello sir please help me

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Civil Disobedience Movement: Essay & Important Notes

Beginning of the movement.

The Salt Satyagraha was one of the factors that led to the initiation of the Civil Disobedience Movement. The Dandi March was conducted by Mahatma Gandhi and his several followers to break the salt law. The Salt Satyagraha led to the extraction of salt from seawater and it was on the culmination of the Dandi March that Gandhiji announced the Civil Disobedience Movement. The announcement of this movement filled the people of India with new energy to fight for their independence.

Activities During the Movement

The sole aim of Mahatma Gandhi was to organize non-violent protests across the nation to attain the aim of Purna Swaraj. For this, several non-violent protests and activities were undertaken across the nation. The objective of the movement was to defy the British government and its laws that were imposed on Indians. Boycott of foreign goods, clothes, and liquor marked the movement and its protests.

In Bihar and other states, anti-Chowkidari tax campaigns were launched wherein villagers refused to pay any money for protection to the local guards. In Gujarat, a no-tax campaign was carried out. As per this campaign, no revenue was paid to the British government. Forest laws were also defied in many regions where the tribal population was pre-dominant. In Uttar Pradesh as well, no tax and no-rent campaigns were organized.

Martial Law

Mahatma Gandhi was arrested after the Dandi March and the people of India were outraged. There were widespread arrests across the country and the people participated in the Civil Disobedience Movement with more fervor. The British government used highly repressive measures like mass arrests, lathi charges, and police firing. However, people continued to defy the British laws by continuing strikes and therefore a martial law was imposed in the country in 1930.

The Political and Economic Policy of Mahatma Gandhi and the Reaction of the British Government

After the release, Mahatma Gandhi launched another phase of the Civil Disobedience Movement by specifying a political and economic policy. This policy stated the abolition of salt tax and reduction in land revenue by 50%. The policy also indicated the demands on the middle-class in terms of reserving coastal land for Indians and keeping a check on the rupee-sterling exchange rate. The political demands of the policy were to bring changes in the Arms Act, changes in the working of the Central Intelligence Department, prohibition of intoxicants in the country, and reduction on military expenditure.

To address the policy reforms, the British government formed the Simon Commission and convened the First Round Table Conference in the year 1930. This was boycotted by the Indian National Congress, but attended by the Muslim League, Hindu Mahasabha, and others.

However, without the participation of the Congress, the conference did not have any meaning, so the Congress was persuaded to join the Second Round Table Conference. It was made clear that the government was not interested in India’s independence and the conference met with a failure.

In 1939, the Civil Disobedience Movement was withdrawn as the government repression intensified. A resolution was passed by the leaders in India to form a constituent assembly elected by the people of India. The movement laid down the foundation for an independent India and ignited the right to freedom in every Indian.

Important Notes

  • Under the leadership of Gandhiji, the Civil Disobedience Movement was launched in 1930. It began with the Dandi March.
  • Gandhiji and his followers protested against the Salt Law.
  • In Tamil Nadu, C Rajagopalchari led a similar march from Trichinopoly to Vedaranyam. In Gujarat, Sarojini Naidu protested in front of the salt depots. Lakhs of people including a large number of women participated actively in these protests.

Practically the whole country became involved in the movement. There were large-scale boycotts of schools, colleges, and offices. Foreign goods were burnt in bonfires. People stopped paying taxes.

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असहयोग आंदोलन : कारण और परिणाम – Non Cooperation Movement in Hindi

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  • Updated on  
  • फरवरी 8, 2024

Non Cooperation Movement in Hindi

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व किया था। वहीं ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चलाए गए राष्ट्रव्यापी आंदोलन में से एक ‘ असहयोग आंदोलन’ (Non Cooperation Movement in Hindi) भी था। इस आंदोलन में देश के कई बड़े नेताओं ने हिस्सा लिया था जिसमें ‘ डॉ राजेन्द्र प्रसाद ’ , ‘ सरदार वल्लभभाई पटेल ’ , ‘ सुभाष चंद्र बोस ’ , ‘ लाला लाजपत राय ’ , ‘ जवाहरलाल नेहरू ’ और ‘मौलाना मोहम्मद अली’ आदि के नाम मुख्य रूप से लिए जा सकते हैं। 

बता दें कि असहयोग आंदोलन एक अहिंसक आंदोलन था लेकिन चौरी चौरा में हुई हिंसक घटना के बाद इस आंदोलन को समाप्त कर दिया गया। आइए अब हम ‘असहयोग आंदोलन’ (Non Cooperation Movement in Hindi) के बारे में विस्तार से जानते हैं, इसलिए ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़ें। 

This Blog Includes:

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Non Cooperation Movement in Hindi (असहयोग आंदोलन) 1920 में 5 सितंबर को शुरू किया गया था। इसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था और ब्रिटिश उत्पादों के उपयोग को समाप्त करने, ब्रिटिश पदों से इस्तीफा लेने या इस्तीफा देने, सरकारी नियमों, अदालतों आदि पर रोक लगाने पर ध्यान केंद्रित किया गया था। यह आंदोलन अहिंसक था और जलियांवाला के बाद देश के सहयोग को वापस लेने के लिए शुरू किया गया था जलियांवाला बाग हत्याकांड और रौलट एक्ट । महात्मा गांधी ने कहा कि यदि यह आंदोलन सफल रहा तो भारत एक वर्ष के भीतर स्वतंत्रता प्राप्त कर सकता है। यह एक जन आंदोलन के लिए व्यक्तियों का संक्रमण था। असहयोग को पूर्ण स्वराज पाने के लिए भी ध्यान केंद्रित किया गया जिसे पूर्ण स्वराज भी कहा जाता है।

असहयोग आंदोलन अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ 1 अगस्त 1920 को गांधी जी द्वारा शुरू किया गया सत्याग्रह आंदोलन है। यह अंग्रेजों द्वारा प्रस्तावित अन्यायपूर्ण कानूनों और कार्यों के विरोध में देशव्यापी अहिंसक आंदोलन था। इस आंदोलन में, यह स्पष्ट किया गया था कि स्वराज अंतिम उद्देश्य है। लोगों ने ब्रिटिश सामान खरीदने से इनकार कर दिया और दस्तकारी के सामान के उपयोग को प्रोत्साहित किया।

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असहयोग आंदोलन

Non Cooperation Movement in Hindi (असहयोग आंदोलन) प्रमुख रूप से दो पहलुओं पर आधारित था, संघर्ष और आचरण के नियम। इसकी कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं: 

  • उनके शीर्षकों और उल्लेखनीय पदों से त्याग
  • गैर-सहयोग आंदोलन ने भारत में निर्मित वस्तुओं और उत्पादों के उपयोग और विनिर्माण को आगे बढ़ाया और ब्रिटिश उत्पादों के उपयोग को और अधिक बढ़ावा दिया।
  • Non Cooperation Movement in Hindi की सबसे आवश्यक विशेषता ब्रिटिश नियमों के खिलाफ लड़ने के लिए अहिंसक और शांतिपूर्ण का पालन करना था।
  • भारतीयों को विधान परिषद के चुनावों में भाग लेने से मना करने के लिए कहा गया था।
  • ब्रिटिश शिक्षा संस्थानों को प्रतिबंधित और वापस लेना

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Non Cooperation Movement in Hindi की स्थापना से पहले पिछले वर्षों में हुए Non Cooperation Movement in Hindi को शुरू करने के पीछे सिर्फ एक कारण नहीं था। इस आंदोलन के कुछ महत्वपूर्ण कारण इस प्रकार हैं:

  • विश्व युद्ध 1 – विश्व युद्ध के दौरान 1 भारतीय सैनिक ब्रिटिश पक्ष से लड़े और भारतीय समर्थन के लिए एक टोकन के रूप में, ब्रिटिश भारत की स्वतंत्रता के रूप में एहसान वापस कर सकते हैं। लगभग 74,000 सैनिकों की बलि दी गई और बदले में, कुछ भी नहीं दिया गया। 
  • किफायती मुद्दे – प्रथम विश्व युद्ध के बाद, पूरे भारत में कई आर्थिक मुद्दे थे। हर उत्पाद की कीमत बढ़ रही थी और दूसरी तरफ, किसानों को अपने कृषि उत्पादों के लिए आवश्यक मजदूरी नहीं मिल पा रही थी, जिसके परिणाम स्वरूप ब्रिटिश सरकार के प्रति नाराजगी थी।
  • रौलट एक्ट – रौलट एक्ट ने भारतीयों की स्वतंत्रता को दूसरे स्तर पर नकार दिया। इस अधिनियम के अनुसार, ब्रिटिश किसी को भी गिरफ्तार कर सकते हैं और उन्हें उचित परीक्षण के अधिकार के बिना जेल में रख सकते हैं। इसने Non Cooperation Movement in Hindi के प्रमुख कारणों में से एक को जन्म दिया।
  • जलियाँवाला बाग हादसा – 13 अप्रैल 1919 को हुआ जलियांवाला बाग नरसंहार, हर भारतीय में रोष और आग भर देने वाली घटना थी, जो ब्रिटिश सरकार में सबसे कम विश्वास था। इस नरसंहार में, ब्रिगेडियर-जनरल रेजिनाल्ड डायर के आदेश से 379 लोग मारे गए और 1200 घायल निहत्थे नागरिकों को नुकसान पहुँचाया गया 
  • खिलाफत आंदोलन – उस समय मुसलमानों का धार्मिक प्रमुख टर्की का सुल्तान माना जाता था। प्रथम विश्व युद्ध में जब टर्की को अंग्रेजों ने हराया था, मौलाना मोहम्मद अली और मौलाना शौकत अली, मौलाना आजाद, हकीम अजमल खान और हसरत मोहानी के नेतृत्व में खिलाफत आंदोलन के रूप में एक समिति का गठन किया गया था। इस आंदोलन ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता का कार्य किया क्योंकि खिलाफत आंदोलन के नेता Non Cooperation Movement in Hindi में शामिल हो गए।

Non Cooperation Movement in Hindi स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े आंदोलनों में से एक था। सभी प्रयासों के बावजूद, यह एक सफलता थी और कुछ कारणों के कारण, इसे निलंबित कर दिया गया था।

  • उत्तर प्रदेश में वर्ष 1922 फरवरी में, किसानों के एक हिंसक समूह ने पुलिस स्टेशन में आग लगा दी और 22 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी।
  • गैर-सांकेतिक आंदोलन अहिंसक या शांतिपूर्ण था लेकिन कुछ हिस्सों में, आंदोलन हिंसक आक्रोश और विरोध में बदल गया।
  • गांधी जी ने सीआर दास, मोतीलाल नेहरू और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे नेताओं की आलोचना करते हुए कहा कि भारत अहिंसक आंदोलन के लिए तैयार नहीं था। 

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भले ही Non Cooperation Movement in Hindi सफल नहीं था लेकिन इसने कुछ प्रभाव छोड़ दिए। यहाँ इस आंदोलन के सभी प्रभाव हैं:

  • इस आंदोलन ने लोगों में ब्रिटिश विरोधी भावना विकसित की जिसके कारण लोग ब्रिटिश शासन और नेताओं से छुटकारा पाने की कोशिश कर रहे थे।
  • जब खिलाफत आंदोलन को Non Cooperation Movement in Hindi में मिला दिया गया, तो इससे हिंदुओं और मुसलमानों में एकता आई।
  • ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार और खादी उत्पादों का प्रचार।
  • यह पहला आंदोलन था जिसमें बड़े पैमाने पर लोगों ने भाग लिया, इसने विभिन्न श्रेणियों के लोगों जैसे किसानों, व्यापारियों आदि को विरोध में एक साथ लाया।

चौरीचौरा, उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास का एक कस्बा है जहां 4 फरवरी 1922 को भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की हिंसक कार्यवाही के बदले में एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी थी। इससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी ज़िंदा जलकर मर गए थे।

इस घटना को इतिहास के पन्‍नों में चौरी चौरा कांड से के नाम से जाना जाता है। इस कांड का भारतीय स्वतत्रंता आंदोलन पर बड़ा असर पड़ा। इसी कांड के बाद महात्मा गांधी काफी परेशान हो गए थे। इस हिंसक घटना के बाद गांधी जी ने अपना जोर शेर से चल रहे आंदोलन असहयोग आंदोलन वापिस ले लिया।

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असहयोग आंदोलन का प्रसार निम्नलिखित तरीकों से किया गया :-

  • अली बंधुओं और महात्मा गांधी ने राष्ट्रव्यापी छात्र और राजनीतिक कार्यकर्ता रैलियों और सभाओं का आयोजन किया। 800 से अधिक राष्ट्रीय स्कूलों और कॉलेजों में दाखिला लेने के लिए हज़ारों छात्रों ने औपनिवेशिक स्कूलों और कॉलेजों को छोड़ दिया।
  • बंगाल में अकादमिक बहिष्कार प्रमुख था। सीआर दास ने इसे बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और सुभाष बोस ने कलकत्ता राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व किया। यह पंजाब में भी सफल रहा, जहां लाला लाजपत राय ने प्रमुख भूमिका निभाई।
  • सीआर दास, मोतीलाल नेहरू, सैफुद्दीन किचलू और एमआर जयकर जैसे वकीलों ने अदालतों का बहिष्कार किया।
  • बंगाल के मिदनापुर जिले में यूनियन बोर्ड करों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया गया था। चिराला के पिराला और पेदानंदीपाडु तालुका में आंध्र जिले के गुंटूर में भी कर-मुक्त आंदोलन उभरा।
  • उत्तर प्रदेश में एक शक्तिशाली किसान सभा आंदोलन उभर रहा था। जवाहरलाल नेहरू असहयोग आंदोलन के नेता थे।
  • केरल के मालाबार क्षेत्र में, असहयोग और खिलाफत प्रचार ने मुस्लिम किरायेदारों, जिन्हें मोपला कहा जाता है, को उनके किराएदारों के खिलाफ जगाया। 
  • असम में चाय बागान मजदूरों ने हड़ताल का आह्वान किया। 
  • आंध्र ने वन कानूनों की अवहेलना की।
  • पंजाब में अकाली आंदोलन भ्रष्ट महंतों (पुजारियों) से गुरुद्वारों के नियंत्रण का विरोध करने के लिए असहयोग आंदोलन का हिस्सा था।

यहाँ ‘असहयोग आंदोलन’ (Non Cooperation Movement in Hindi) की संपूर्ण जानकारी के साथ ही इस आंदोलन से जुड़े सभी प्रमुख नेताओं के बारे में भी बताया गया है, जो कि इस प्रकार हैं:-

  • डॉ राजेन्द्र प्रसाद
  • सरदार वल्लभभाई पटेल
  • सुभाष चंद्र बोस
  • लाला लाजपत राय  
  • जवाहरलाल नेहरू
  • मौलाना मोहम्मद अली 
  • जितेंद्रलाल बनर्जी

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Non Cooperation Movement in Hindi स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े आंदोलनों में से एक था। तमाम कोशिशों के बाद भी यह सफल रही और कुछ कारणों से इसे स्थगित कर दिया गया।

  • उत्तर प्रदेश में फरवरी 1922 में, किसानों के एक हिंसक समूह ने थाने में आग लगा दी और 22 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी।
  • असहयोग आंदोलन अहिंसक या शांतिपूर्ण था लेकिन कुछ हिस्सों में यह आंदोलन हिंसक आक्रोश और विरोध में बदल गया।
  • सीआर दास, मोतीलाल नेहरू और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे नेताओं ने गांधी जी की आलोचना करते हुए कहा कि भारत अहिंसक आंदोलन के लिए तैयार नहीं है। 

UPSC 2022 के उम्मीदवारों को असहयोग आंदोलन के बारे में नीचे दिए गए बिंदुओं को जानना चाहिए:

सविनय अवज्ञा की शुरुआत महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुई थी। यह 1930 में स्वतंत्रता दिवस के पालन के बाद शुरू किया गया था। सविनय अवज्ञा आंदोलन कुख्यात दांडी मार्च के साथ शुरू हुआ जब गांधी 12 मार्च 1930 को आश्रम के 78 अन्य सदस्यों के साथ अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से पैदल चलकर दांडी के लिए निकले। दांडी पहुंचने के बाद, गांधी ने नमक कानून तोड़ा। नमक बनाना अवैध माना जाता था क्योंकि इस पर पूरी तरह से सरकारी एकाधिकार था। नमक सत्याग्रह देश भर में सविनय अवज्ञा आंदोलन को एक व्यापक स्वीकृति के लिए नेतृत्व किया। यह घटना लोगों की सरकार की नीतियों की अवहेलना का प्रतीक बन गई। अधिक जानने के लिए, सविनय अवज्ञा आंदोलन पर हमारा ब्लॉग पढ़ें।

भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान भारत में ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए शुरू किए गए दो आंदोलन खिलाफत और असहयोग आंदोलन थे। दोनों आंदोलनों ने अहिंसा कृत्यों का पालन किया। जबकि आंदोलनों के पीछे कई कारण थे, खिलाफत आंदोलन के पीछे एक प्रमुख कारण यह था कि जब मुसलमानों के धार्मिक प्रमुख जो तुर्की के सुल्तान थे, को अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया था। खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व मौलाना मोहम्मद अली और मौलाना शौकत अली, मौलाना आज़ाद, हकीम अजमल खान और हसरत मोहानी ने किया। इस आंदोलन ने हिंदुओं और मुसलमानों को एकजुट किया क्योंकि खिलाफत आंदोलन के नेता असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए।

1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने के मुख्य कारण के रूप में यह शक्तिशाली भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों में से एक बन गया:

  • क्रिप्स प्रस्ताव की विफलता भारतीयों के लिए जागृति का आह्वान बन गई 
  • विश्व युद्ध द्वारा लाई गई कठिनाइयों से आम जनता का असंतोष

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन PDF

रौलट एक्ट इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा पारित एक ऐसा अधिनियम था जिसमें कहा गया था कि किसी व्यक्ति को परीक्षण या न्यायिक समीक्षा के बिना कैद किया जा सकता है।

मौलाना मोहम्मद अली और मौलाना शौकत अली खिलाफत आंदोलन से जुड़े अली ब्रदर्स हैं।

हां,असहयोग आंदोलन में महात्मा गांधी को गिरफ्तार किया गया था और 6 साल की सजा सुनाई गई थी ।

लाला लाजपत राय, मोतीलाल नेहरा, सीआर दास और महात्मा गांधी Non Cooperation Movement से जुड़े प्रमुख नेता हैं।

चौरी चौरा की घटना के बाद जिसमें 22 पुलिसकर्मी हिंसक भीड़ द्वारा मारे गए, महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को भंग करने का फैसला किया।

असहयोग आंदोलन 1920 में शुरू किया गया था और 1922 में समाप्त हुआ था।

असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement in Hindi) 5 सितंबर 1920 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) द्वारा शुरू किया गया था। सितंबर 1920 में कलकत्ता में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में पार्टी ने असहयोग कार्यक्रम की नींव राखी गयी।

अंग्रेज हुक्मरानों की बढ़ती ज्यादतियों का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी ने 1920 में एक अगस्त को असहयोग आंदोलन का आगाज किया था. आंदोलन के दौरान विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया. वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया. कई कस्बों और नगरों में मजदूर हड़ताल पर चले गए।

असहयोग आंदोलन अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ 1 अगस्त 1920 को गांधी जी द्वारा शुरू किया गया सत्याग्रह आंदोलन है। यह अंग्रेजों द्वारा प्रस्तावित अन्यायपूर्ण कानूनों और कार्यों के विरोध में देशव्यापी अहिंसक आंदोलन था। इस आंदोलन में, यह स्पष्ट किया गया था कि स्वराज अंतिम उद्देश्य है।

अंग्रेज हुक्मरानों की बढ़ती ज्यादतियों का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी ने एक अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन की शुरूआत की. आंदोलन के दौरान विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया, वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया और कई कस्बों और नगरों में श्रमिक हड़ताल पर चले गए।

असहयोग आंदोलन 1 अगस्त 1920 में औपचारिक रूप से शुरू हुआ था और बाद में आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को प्रस्ताव पारित हुआ जिसके बाद कांग्रेस ने इसे अपना औपचारिक आंदोलन स्वीकृत कर लिया।

आशा है कि आपको ‘असहयोग आंदोलन’ (Non Cooperation Movement in Hindi) से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी मिल गई होगी। ऐसे ही ज्ञानवर्द्धक और जनरल नॉलेज से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहे। 

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The Salt March: a Quintessential Act of Civil Disobedience

This essay about the Salt March led by Mahatma Gandhi in 1930 exemplifies civil disobedience as a powerful tool for social and political change. It outlines how Gandhi’s peaceful march against the British salt tax drew international attention to the Indian independence movement and demonstrated the effectiveness of nonviolent resistance. By deliberately breaking an unjust law in a public and peaceful manner, Gandhi and his followers sparked a widespread campaign of civil disobedience that weakened British authority in India. The essay highlights the strategic planning of the Salt March and its significance in uniting a diverse population against colonial oppression. It also touches on the impact of Gandhi’s methods on future leaders and movements worldwide, showcasing the enduring legacy of the Salt March as a model for challenging injustice through collective action and nonviolent protest.

How it works

The concept of civil disobedience, defined as the refusal to adhere to specific laws or governmental commands as a method of peaceful protest, has played a pivotal role in various social and political movements across epochs. Among the plethora of illustrations showcasing the potency and efficacy of civil disobedience, Mahatma Gandhi’s Salt March emerges as a particularly poignant exemplar. This nonviolent demonstration of defiance against British colonial dominance not only illuminated the injustices perpetuated by the salt tax imposed on the Indian populace but also marked a significant juncture in the quest for Indian sovereignty.

In March 1930, Gandhi, accompanied by throngs of adherents, undertook a 240-mile pilgrimage from his commune in Sabarmati Ashram to the coastal hamlet of Dandi on the Arabian Sea. The march served as a direct rebuke against the British monopoly on salt production, which encompassed a salt levy that disproportionately burdened the most impoverished segments of India’s society. By producing salt himself, Gandhi aimed to flout the law in a conspicuously public manner, courting apprehension and spotlighting the ethical bankruptcy of British governance.

While the Salt March did not yield immediate policy alterations or freedom for India, its reverberations transcended the immediate objective of protesting the salt tax. It garnered global attention for the Indian independence movement and showcased the efficacy of collective action and civil disobedience. The march galvanized thousands across India to partake in analogous acts of rebellion, manufacturing their own salt and openly contravening British statutes. This widespread campaign of civil disobedience substantially eroded British dominion and moral authority, both domestically and internationally.

What rendered the Salt March an archetype of civil disobedience was not solely the act of salt production but the deliberate, serene manner in which Gandhi and his adherents engaged in the protest. Gandhi’s methodology was anchored in the principle of Satyagraha, or truth force, advocating for nonviolent resistance as a conduit to achieve societal and political objectives. By selecting a universally essential commodity such as salt as the focal point of protest, Gandhi succeeded in mobilizing a broad spectrum of Indian society, uniting them in a collective endeavor against colonial subjugation.

Moreover, the Salt March epitomizes the strategic application of civil disobedience to contest unjust legislation. Gandhi’s meticulous strategizing and the symbolic resonance of the march captured the imagination of millions, underscoring that nonviolent protest could constitute a formidable weapon against oppression. The march not only incited a surge of analogous acts of civil disobedience throughout India but also influenced subsequent generations of activists globally, including luminaries such as Martin Luther King Jr. and Nelson Mandela, in their crusade for justice and parity.

In summation, the Salt March stands as a compelling testimony to the efficacy of civil disobedience as a mechanism for effecting social and political transformation. Gandhi’s astute selection of protest tactics, grounded in nonviolence and mass mobilization, not only confronted British authority but also provided a blueprint for peaceful resistance that reverberates through the ages. The enduring legacy of the Salt March underscores the notion that even the most entrenched injustices can be contested and surmounted through collective action and the moral authority of nonviolent protest.

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The Salt March: A Quintessential Act of Civil Disobedience. (2024, Mar 25). Retrieved from https://papersowl.com/examples/the-salt-march-a-quintessential-act-of-civil-disobedience/

"The Salt March: A Quintessential Act of Civil Disobedience." PapersOwl.com , 25 Mar 2024, https://papersowl.com/examples/the-salt-march-a-quintessential-act-of-civil-disobedience/

PapersOwl.com. (2024). The Salt March: A Quintessential Act of Civil Disobedience . [Online]. Available at: https://papersowl.com/examples/the-salt-march-a-quintessential-act-of-civil-disobedience/ [Accessed: 12 Apr. 2024]

"The Salt March: A Quintessential Act of Civil Disobedience." PapersOwl.com, Mar 25, 2024. Accessed April 12, 2024. https://papersowl.com/examples/the-salt-march-a-quintessential-act-of-civil-disobedience/

"The Salt March: A Quintessential Act of Civil Disobedience," PapersOwl.com , 25-Mar-2024. [Online]. Available: https://papersowl.com/examples/the-salt-march-a-quintessential-act-of-civil-disobedience/. [Accessed: 12-Apr-2024]

PapersOwl.com. (2024). The Salt March: A Quintessential Act of Civil Disobedience . [Online]. Available at: https://papersowl.com/examples/the-salt-march-a-quintessential-act-of-civil-disobedience/ [Accessed: 12-Apr-2024]

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Essay on Civil Disobedience Movement in India (1930-34)

essay on civil disobedience movement in hindi

“The civil disobedience movement of 1930-31, then marked a critically important stage in the progress of the anti-imperialist struggle”-Bipan Chandra.

Gandhi addressed an ultimatum to Viceroy Lord Irwin on 31 January, asking him to remove the evils of the British rule and also informed of his decision to undertake Dandi Satyagraha wherein the laws of the government would be violated.

The list of demands consisted the following:

(1) Prohibit intoxicants,

(2) Change the ratio between the rupee and the sterling,

ADVERTISEMENTS:

(3) Reduce the rate of land revenue,

(4) Abolition of salt tax,

(5) Reduce the military expenditure,

(6) Reduce expenditure on civil administration,

(7) Impose custom duty on foreign cloth,

(8) Accept the Postal Reservation Bill,

(9) Abolish the CID department,

(10) Release all political prisoners, and

(11) Issue licenses of arms to citizens for self-protection.

Gandhi made it clear that if the 11 points are ignored, the only way out was civil disobedience. Breaking the salt laws of the government non-violently was the basic activity of civil disobedience. Along with this activity, activities like no tax campaign, no revenue and no rent (land tax) campaign became very popular in different parts of India.

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Image Source: historydiscussion.net/wp-content/uploads/2015/07/3934252208_2d3972e175_b.jpg

After deciding to start the Dandi Salt Satyagraha, Gandhi addressed a letter to Lord Irwin on 2 March, 1930 intimating, “on the 11th day of this month, I shall proceed with such co-workers of the Ashram as I can take, to disregard the provi­sions of the salt laws. It is, I know, open to you to frustrate my design by arresting me, I hope that there will be tens of thousands ready, in a disciplined manner, to take up the work after me, and in the act of disobeying the Salt Act to lay themselves upon to the penalties of a law that should never have disfigured the statute book”.

Bipan Chandra et al. correctly point out “the deceptively innocuous move was to prove devastatingly effective”, as later day events success­fully proved. Gandhi started his march, staff in hand with a band of dedicated peaceful Satyagrahis and reached Dandi on 6 April, 1930 and inaugurated the civil disobedience movement, a movement that was to remain unsurpassed in the history of the Indian national movement for the country-wide mass participation it unleashed. Nearly 90,000 people belonging to all social groups spread over the whole of India participated wholeheartedly in this movement.

Significantly, for Indian women, the movement was the most liberating experience to date and the can be said to have marked their entry into public space. The British government resorted to cruel repression in spite of the total non-violent conduct of the movement by issuing more than a dozen ordinances.

The Indian National Congress was declared an illegal body and Gandhi was arrested on 5 May, 1930. The arrest of Gandhi infuriated the masses and they voluntarily expressed their solidarity with the movement.

The uncommon heroism exhibited by thousands of Satyagrahis throughout the breadth of India was really very commendable and exemplary as that of Thota Narasayya Naidu who held the flag in hand in spite of severe beating by the police of Machilipamam.

The national flag, the symbol of the new spirit, now became a common sight even in remote villages. While the civil disobedience was going on, the British government convened the Round Table Conferences. Gandhi did not attend the first one held in 1930.

Gandhi agreed to attend the Second Round Table Conference of 1931 and in this background only Gandhi-Irwin pact was concluded, which was variously described as a ‘truce’ and a ‘provisional settlement’.

By this agreement it was agreed upon:

(a) To withdraw all ordinances and pending prosecutions,

(b) To release all political prisoners except those who were guilty of violence,

(c) To restore the confiscated property of the Satyagrahas,

(d) To permit peaceful picketing of liquor, opium and foreign cloth shops, and

(e) To permit the collection or manufacture of salt, free of duty, by persons residing within a specific distance of the sea shore,

(f) The Congress agreed not to press for investi­gation into police excess,

(g) To suspend the civil disobedience movement, and

(h) To stop boycott and to participate in the Second Round Table Conference. In 1931 certain events – coming to power of conservatives, replacement of the Viceroy, and execution of Bhagat Singh – created an atmosphere of dejection in Gandhi and other younger Indian leaders. The Congress decided to restart the movement in January 1932.

As usual, the British government took stem steps to suppress the movement and in the meanwhile the British Prime Minister announced communal award in 1932. The civil disobedience movement continued up to 1934 and it was suspended in that year.

Bipan Chandra et al. observe:

“The civil disobedience movement of 1930-31, then marked a critically important stage in the progress of the anti-imperialist struggle”. But Anil Seal, the Cambridge historian observes “Civil disobedience, the salt march to Dandi (an astute move by Gandhi to play for time and to test opinion), his programme tailored to achieve the widest appeal (whether temperance, Khadi, enlisting women or social uplift, especially of Harijans) and the 60,000 or more who went to jails notwithstanding, failed to mobilize India’s millions.

Except here and there in Gujarat and the Godavari deltas and as a part of Midnapore, civil disobedience was not a mass movement. They had merely scratched a surface of Indian society. They had not shaken the British Raj and by 1933 they had in reality been defeated”. This statement of Anil Seal has been disproved by Bipan Chandra and Sumit Sarkar.

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